Saturday, 29 August 2015

ABOUT नागा साधु





नागा जाति : नागा भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड, जिसमें नंगा पर्वत श्रेणियां फैली हुई हैं, नागा जनजाति का मूल निवास स्थान है। 

नागा शब्द का अर्थ : 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं। कच्छारी भाषा में 'नागा' से तात्पर्य 'एक युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति' से लिया जाता है। 'नागा' का अर्थ 'नंगे' रहने वाले व्यक्तियों से भी है। उत्तरी-पूर्वी भारत में रहने वाले इन लोगों को भी 'नागा' कहते हैं।

कुछ विद्वानों का मत है कि नागा संन्यासियों के अखाड़े आदि शंकराचार्य के पहले भी थे, लेकिन उस समय इन्हें अखाड़ा नाम से नहीं पुकारा जाता था। इन्हें बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। 

कुछ अन्य इतिहासकार यह मानते हैं कि भारत में नागा संप्रदाय की परंपरा प्रागैतिहासिक काल से शुरू हुई है। सिंधु की घाटी में स्थित विख्यात मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाई जाने वाली मुद्रा तथा उस पर पशुओं द्वारा पूजित एवं दिगंबर रूप में विराजमान पशुपति की प्रतिमा इस बात का प्रमाण है कि वैदिक साहित्य में भी ऐसे जटाधारी तपस्वियों का वर्णन मिलता है। भगवान शिव इन तपस्वियों के अराध्य देव हैं।

सिकंदर महान के साथ आए यूनानियों को अनेक दिगंबर साधुओं के दर्शन हुए थे। बुद्ध और महावीर भी इन्हीं साधुओं के दो प्रधान संघों के अधिनायक थे। जैन धर्म में जो दिगंबर साधु होते हैं और हिंदुओ में जो नागा संन्यासी हैं वे दोनों ही एक ही परंपरा से निकले हुए हैं। इस देश में नागा जाति भी होती है जो नागालैंड में रहती है।


कुंभ से पहले कहां रहते हैं नागा साधु, कहां सोते हैं और क्या खाते हैं





  • देखें: ऐसे बनते हैं नागा साधु

    • दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले-महाकुंभ के कई अलग-अलग रंगों में एक रंग हैं- नागा साधु जो हमेशा की तरह श्रद्धालुओं के कौतूहल का केंद्र बने हुए हैं।
    • इनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य की तरह होता है।
    • नागा साधु बनाने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही होती है।
    • नागा साधु बनने के लिए इतनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद बिना संन्यास और दृढ़ निश्चय के कोई व्यक्ति इस पर पार ही नहीं पा सकता।
    • सनातन परंपरा की रक्षा और उसे आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाते हैं।
    • अखाड़ों के मुताबिक इस बार प्रयाग महाकुंभ में पांच हजार से ज्यादा नागा साधु बनाए जाएंगे।
    • आमतौर पर नागा साधु सभी संन्यासी अखाड़ों में बनाए जाते हैं लेकिन जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा नागा साधु बनाता है।
    • सभी तेरह अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा भी माना जाता है।
    • जूना अखाड़े के महंत नारायण गिरि महाराज के मुताबिक नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है।
    • अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है।
    • नागा को आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है।
    • नागा बनने आए व्यक्ति की पूरी पृष्ठभूमि देखी जाती है।
    • अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है तो उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
    • प्रवेश की अनुमति के बाद पहले तीन साल गुरुओं की सेवा करने के साथ धर्म कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है।
    • इसी अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
    • उन्होंने कहा कि अगली प्रक्रिया कुंभ मेले के दौरान शुरू होती है। जब ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष बनाया जाता है।
    • इस दौरान उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार गंगा में डुबकी लगवाई जाती है।
    • उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। महापुरुष के बाद उसे अवधूत बनाया जाता है।
    • अखाड़ों के आचार्य द्वारा अवधूत का जनेऊ संस्कार कराने के साथ संन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती हैं।
    • इस दौरान उसके परिवार के साथ उसका भी पिंडदान कराया जाता है।
    • इसके पश्चात दंडी संस्कार कराया जाता है और रातभर उसे ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है।
    • उसके पश्चात सभी को फिर से गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं।
    • स्नान के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उससे दंडी त्याग कराया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है।
    • चूंकि नागा साधु की प्रक्रिया प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुम्भ के दौरान ही होती है।
    • प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा कहा जाता है।
    • माया मोह त्यागकर वैराग्य धारण की इच्छा लिए विभिन्न अखाड़ों की शरण में आने वाले व्यक्तियों को परम्परानुसार आजकल प्रयाग महाकुंभ में नागा साधु बनाया जा रहा है।
    • जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता।
    • जूना अखाड़े के एक और महंत नरेंद्र महाराज कहते हैं कि जाप के बाद भोर में अखाड़े के महामंडलेश्वर उससे विजया हवन कराते हैं।
    • हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।
    • इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है





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